अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ध्येय यात्रा: Akhil Bhartiya Vidyarthi Parishad ke dhyey Yatra
पटना: पूरे देश में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का एक बहुत बड़ा संगठन बना हुआ है। यह संगठन हमेशा सामाजिक कार्यों को करते रहता है। इस संगठन से जुड़े व्यक्ति हमेशा से छात्र-छात्राओं का भी मुद्दों को उठाते आया है। बल्कि छात्र-छात्रा क्या समाज के बीच दबे कुचले कई मुद्दों को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य हमेशा से उठाते आया है। देशभर में कहीं भी कभी भी यदि छात्र-छात्रा के पढ़ाई का विषय हो या फॉर्म भरने में कोई समस्या हो तो उस मुद्दा को भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य उठाया है। समय-समय पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अपने संगठन को मजबूत करने के लिए बैठक भी आयोजित करती है। अखिल विद्यार्थी परिषद के सदस्य का मानना है हम लोगों का संगठन पूरे देश में एक मजबूत संगठन बना हुआ है। हम लोग कभी भी किसी भी मुद्दा को उठाते हैं तो उसका जब तक हल नहीं हो जाता है तब तक हम लोग मुद्दा उठाना बंद नहीं करते हैं। किसी भी समय हम लोग समाज के दबे कुचले लोगों के साथ खड़े रहते हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का रहा है लंबा सफर
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपनी यात्रा का एक पड़ाव और पार कर लिया। स्वतंत्रता के तुरंत बाद राष्ट्रीय विचार से ओत-प्रोत देश की छात्र-युवाओं की पहल पर अभाविप का कार्य प्रारंभ हो गया था, किंतु उसे संवैधानिक रूप देकर पंजीकृत कराने का काम 9 जुलाई 1949 को हुआ। इसे ही परिषद अपने स्थापना दिवस की रुप में मनाती है। 9 जुलाई 2023 को इसने अपने अमृतकाल में प्रवेश किया है। एक दृष्टि से देखें तो परिषद की यह 75 वर्षों की यात्रा स्वाधीन भारत की यात्रा की साथ-साथ चली है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया और राष्ट्रीय विचार के आग्रही प्रतिपादन तथा समसामयिक प्रश्नों पर सुविचारित मत को दृढ़ता के साथ रखने की विशिष्ट कार्य पद्धति के कारण परिषद को जहां अनेक बार कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है, वही इस कठिन समय में बिना किसी समझौते के सिद्धांतों पर डटे रहने के स्वभाव के कारण यश भी प्राप्त हुआ है।
“छात्र शक्ति – राष्ट्र शक्ति” एवं “आज का छात्र – आज का नागरिक” जैसी स्थापनाएँ अभाविप को अन्य पेशेवर छात्र संगठनों से अलग करती है।
छात्र गतिविधियों के इतिहास में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का एक विशिष्ट स्थान है
वही पूर्णिया-अररिया विभाग संयोजक अभिषेक आनंद ने कहा कि स्वतंत्र्योतर भारत की छात्र गतिविधियों के इतिहास में अभाविप का एक विशिष्ट स्थान है। वर्तमान समय में विद्यार्थी परिषद अपने उद्देश्य, वैचारिक भूमिका, सिद्धांत, कार्यक्रम व कार्य पद्धति तथा इन सभी से निर्माण होने वाले कार्यकर्ताओं के कारण एक अनोखा एवं अतुल्यनीय संगठन है। अभाविप आज भारत के अग्रणी एवं अत्यंत शक्तिशाली छात्र संगठन के रूप में जानी जाती है। वर्ष भर सक्रिय रहने वाला देशव्यापी संगठन है।
जानकीनगर विस्तार केन्द्र के नगर अध्यक्ष प्रोफ़ेसर प्रेम कुमार जायसवाल ने कहा कि परिषद ने प्रारंभ से ही अपने कार्य के बारे में स्पष्ट शब्दों में कहा कि राष्ट्र पुनर्निर्माण के व्यापक संदर्भ में शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श छात्र अंदोलन विकसित करना जो दलगत राजनीति से ऊपर रहकर शिक्षा-परिवार के अस्तित्व में विश्वास रखते हुए छात्रों की सामुहिक शक्ति व उर्जा को रचनात्मक कार्य में लगाता है।
वही पूर्व नगर अध्यक्ष सूर्य नारायण चौधरी ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सामाजिक संगठनों के योगदान के संदर्भ में विद्यार्थी परिषद के कार्यों का स्थान अनुपम है। “राष्ट्र सर्वोपरि” की भावना से अपने जीवन व्रत को निभाया है और इस मार्ग पर आगे चलने का उसका पवित्र संकल्प भी है। राष्ट्रीय अभियान का यह इतिहास राष्ट्रधर्म के पुनीत विचार तरंग का उद्भव कर हमें जीवनपर्यन्त उस दिशा में सक्रिय होने की प्रेरणा दे सके, यही आशा और विश्वास है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के शशि शेखर के अनुसार
आजादी के बाद पूरे देश ने युगों-युगों की परंपराओं के गौरव और गौरव को ध्यान में रखते हुए अपने राष्ट्र को सभी परिस्थितिजन्य बाधाओं और कमियों से मुक्त कर एक आधुनिक और विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देखा। इस सपने को साकार करने के लिए, ऐसे दृढ़ विश्वास से प्रेरित कुछ युवाओं ने देश भर के कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसरों में केंद्रित एक आंदोलन शुरू किया। इन गतिविधियों का एक राष्ट्रीय मंच 9 जुलाई, 1949 को एक छात्र संगठन – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के रूप में औपचारिक और पंजीकृत किया गया था
एबीवीपी के मूल सिद्धांत
“एबीवीपी एक आदर्श छात्र आंदोलन का निर्माण करना चाहता है जो राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक संदर्भ में, रचनात्मक गतिविधि में दृढ़ विश्वास के साथ शिक्षा के क्षेत्र में, शैक्षिक समुदाय के अस्तित्व में और पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर रहने की आवश्यकता पर काम करेगाl
शैक्षिक समुदाय को न केवल छात्रों बल्कि शिक्षकों, प्रशासकों और शिक्षाविदों को भी शामिल करने के लिए व्यापक संभव अर्थ दिया गया था, यहां तक कि इस शब्द को गैर-शिक्षण कर्मचारियों को भी शामिल करने के लिए बढ़ाया जा सकता है।
हम ‘पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर’ हैं लेकिन हम स्वीकार करते हैं कि सामाजिक गतिविधि सच्चे अर्थों में गैर-राजनीतिक नहीं हो सकती। एबीवीपी का मानना है कि देश के नागरिक होने के नाते छात्र सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य हैं और उनके कार्यों के कुछ आवश्यक राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं। हमने बार-बार कहा है कि छात्रों की सामाजिक-राजनीतिक भूमिका होती है। एबीवीपी इस बात पर जोर देती है कि एक छात्र संगठन के रूप में हम किसी राजनीतिक दल की शाखा या हिस्सा नहीं हैं। हमारा मानना है कि राजनीति, दलगत राजनीति, सत्ता की राजनीति, सरकार और राजनीतिक दल आदि समाज के आवश्यक अंग हैं, लेकिन उन्हें सर्वव्यापी और सर्वव्यापी नहीं होना चाहिए। राजनीतिक दल सामाजिक संगठन का केन्द्र बिन्दु नहीं हो सकता। यह केवल अंगों में से एक है। इसलिए सत्ता और सत्ता की राजनीति की सेवा न करने वाले मजबूत जन संगठन एक सफल समाज के आवश्यक घटक हैं। इसके अलावा, मौलिक रूप से सामाजिक परिवर्तन समाज का काम है, यह किसी एजेंसी या सरकार को दिया गया थोक अनुबंध नहीं हो सकता है। परिवर्तन समाज के भीतर से आना चाहिए, जो संगठित व्यक्तिगत भागीदारी की परिणति का दर्पण हो। इसलिए एबीवीपी शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में दलगत राजनीति से ऊपर रहना पसंद करती है।