जब सवरूपज्ञान रूपी सूर्योदय होता है,तब अज्ञान रूपी अंधकार अपने आप समाप्त हो जाता है: प्रेम साहब
नगर पंचायत जानकीनगर के सहवानी गांव स्थित हंस कबीर मठ सहवानी के प्रांगण में बिते दिन पूज्य गुरुदेव महंत भूपनारायण गोस्वामी साहेब एवं कबीर मठ बन्नी खगड़िया के महामंडलेश्वर महंत रघुनंदन गोस्वामी साहब के सानिध्य में तीन दिवसीय 29 वां वार्षिक सत्संग सद्ज्ञान यज्ञ समारोह का आयोजन दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। वही कार्यक्रम के संयोजक प्रो. कुलदीप यादव के द्वारा संत खाखी बाबा के स्थान पर हवन यज्ञ एवं संतो- भक्तों के लिए भंडारा का आयोजन किया गया। वही हंस कबीर मठ सहवानी में शनिवार को शुरू हुए तीन दिवसीय सत्संग में पूज्य गुरुदेव महामंडलेश्वर महंत रघुनंदन गोस्वामी साहब ने कहा यह सद्गुरु हंस कबीर मठ अतिप्राचीन मठ है। पूज्य वीतराग भूपनारायण साहब द्वारा कबीर साहेब के विचारों का प्रचार प्रसार निरंतर किया जा रहा है। यह बहुत ही उपकृत मठ है। पूज्य संत अभय साहब ने कहा आज सदगुरु कबीर साहब को जो सज्जन धारण करेगा। वह जीवन जीने की कला सीख जाएगा। उसके भीतर प्रकाश उद्घाटित हो जाएगा। परंतु जिसे यह कला नहीं आती वह गुलाम बनकर जीवन व्यतीत करता है। मनुष्य का दुर्भाग्य है कि वह अपनी गुलामी को समझ नहीं पाता। इसलिए छोटी-छोटी घटनाओं को देखकर दुखी होते रहता है। वही बनारस से आए आचार्य महंत प्रेम साहब ने कहा मनुष्य जीवन का सार है सत्संग-भजन, गुरु सेवा ,भक्ति करते हुए सदाचार पूर्वक जीवन जीना। वो मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि प्राप्त करता है। जब सवरूपज्ञान रूपी सूर्योदय होता है,तब अज्ञान रूपी अंधकार अपने आप समाप्त हो जाता है। वही नेपाल से आए पूज्य संत उमा साहब ने कहा मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिला है। यह मनुष्य शरीर पाने के लिए देवता भी तरसते हैं। यह मनुष्य शरीर देवता को भी दुर्लभ है। वह मनुष्य शरीर तुम्हें मिला है। तुम्हारे सांस में सारे ब्रह्मांड की शक्ति समाया है। इस राज्य को जानो। वही हंस कबीर मठ सहवानी के उत्तराधिकारी संत अमरदीप साहेब एवं समाज के युवकों में काफी उत्साह से संतों के सेवा में तत्तपर दिखे।
जिसने सद्गुरु शरण में आया,उसका उद्धार हुआ: संत अभय साहब
नगर पंचायत जानकीनगर के हंस कबीर मठ सहवानी में सत्संग के दूसरे दिन रविवार को सद्गुरु कबीर साहब के विचारों को जनमानस तक पहुंचाने का उत्तरोत्तर भर लिए हुए परम पूज्य संत अभय साहब ने कहा मानव जीवन में सत्संग की महती आवश्यकता है। इसके बिना जीवन अव्यस्थित एवं असुरक्षित रहता है। यदि इतिहास की ओर देखते है तो पाते हैं कि बड़े-बड़े अत्याचारी हुए। जिसने सद्गुरु शरण में आया,उसका उद्धार हुआ और जिसने सद्गुरु की शरनागति का प्राप्त नही किया उसका जीवन अस्तित्वहीन रहा। क्योंकि सत्संग रूपी सद्ज्ञान की धारा सद्गुरु के चरणों से ही प्रवाहित होता है। इसका उदाहरण हमारे शास्त्रों से अंगुलिमाल, रतनाकर, रावण और कंस के द्वारा प्राप्त होता है। वही नेपाल से आए संत उमा साहेब ने कहा जो दूसरों को दुख देगा या देना चाहेगा , वह स्वयं दुखों से खाली नहीं रहेगा। इसलिए सबके साथ दया और प्रेम का बर्ताव ही सुरक्षित पथ है। यह अकाट्य बात एवं अटल सिद्धांत है। यह तर्कों से कट नहीं सकता। वही संत पथिक साहेब ने कहा संसार में वही ऊंचे उठाते हैं, जो प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर उनसे विचलित न होकर अपने सतपथ पर बने रहते हैं। बुद्ध, महावीर, सुकरात,कबीर , नानक , दयानंद , विवेकानंद ,गांधी आदि अनेक नाम लिए जा सकते हैं जो प्रतिकूलता आने पर उसे सहते रहे और अपने सतपथ में अडीग बने रहे। प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर झुक जाने वाला व्यक्ति सतपथ पर नहीं चल सकता।आचार्य प्रेम साहेब ने कहा पहुंचा हुआ संत लड़ता नहीं है। वह हार मानता है। वह हारकर जीत जाता है और अहंकारी आदमी जीत कर हार जाता है। हारा सो हरि को मिले,जीता जममपुर जाए,निर्माण व्यक्ति शांति पाता है और अहंकारी वासनाओं के द्वंद में उलझता है। शांति ही हरि है और वासनाओं का द्वंद ही जमपुर है। अतएव सच्चा संत,पूर्ण संत निर्माण एवं निर्द्वंद होकर बिछड़ता है। महामंडलेश्वर रघुनंदन गोस्वामी साहेब ने कहा हीरा सोई सराहिये सहै घनन की चोट जो सुख सम्मान और जीवन मृत्यु की परवाह छोड़ देता है, उसका रास्ता कोई नहीं रोक सकता। मखमली गद्दे में पड़े- पड़े रबड़ी- मलाई चाटते – चाटते मर जाने वाले बहुत है। जिनका कोई मूल्य नहीं है। आधा पेट सूखी रोटी खाकर जन सेवा करने वाले, कांटों की टोपी पहनने वाले, विश्व का प्याला पीने वाले , क्रॉस एवं सूली फांसी पर चढ़ने वाले, खांड की धार पर चलने वाले, पिस्तौल की गोली खाने वाले वह धन है, जो जीवन भर किसी भय के सामने अपने शतपथ से रति भर विचलित नहीं हुए। वही संसार में हीरा है। परम वीतराग महन्त गुरूदेव भूपनारायण गोस्वामी साहेब ने कहा- संत का संततत्व उसके ज्ञान तथा पवित्र रहनी में है। ज्ञानी तथा अज्ञानी का शारीरिक दृष्टि से कोई बड़ा अंतर नहीं रहता है। किंतु मानसिक दशा में जमीन-आसमान का अंतर रहता है। संतों का पारखी ही संतों का मूल्य समझता है। वही कबीर मत सहवानी के अमरदीप साहेब एवं प्रो कुलदीप यादव सहित समाज के लोगों ने काफी तन-मन से सेवा में लगे रहे। इस कार्यक्रम में दूर-दूर से पधारे हुए संत गुरुजनों ने अपने-अपने विचारों एवं भजनों से सत्संग पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओ को भाव विभोर कर दिए।
हंस कबीर मठ सहवानी में तीन दिवसीय सत्संग का हुआ समापन
नगर पंचायत जानकीनगर के सहवानी गांव स्थित सद्गुरु हंस कबीर मठ सहवानी में परम पूज्य गुरुदेव महंत भूपनारायण गोस्वामी साहेब एवं महामंडलेश्वर महंत रघुनंदन गोस्वामी साहेब के सानिध्य में आयोजित तीन दिवसीय सत्संग का अंतिम दिन सोमवार को परम पूज्य संत अभय साहेब ने कहा ज्ञान की कथा करने वाले धारा प्रवाह व्याख्यान देने वाले तो व्याख्यान देते हैं। साधारण लोग भी एक दूसरे की अच्छी बातें करते हैं। जब किसी को दूसरों को सीख देना का अवसर पड़ता है। वही अच्छी सीख देता है। इसलिए मन शुद्ध रखना चाहिए। संतोष की डाली में कर्म फलते हैं। अपनी कर्म कमाई ही साथ जाती है। संसार झूठ है। परिवार,मित्र, भाई बंधु कौन किसका है? आत्मा ही परमात्मा है। भजन ही जीवन का सार है। शांति ही सबसे बड़ा सुख है। काम क्रोधादि को मार कर ही निरवान पद मिलता है। सामान्य लोग भी समय आने पर रहते हैं। वही परम पूज्य संत आचार्य महन्त प्रेम साहब ने कहा मनुष्य समझाने पर भी नहीं समझता वह अपने आप को दूसरों के हाथों में बेच रहा है। मैं तो उसे अपनी ओर खींचता हूं। इस सारी मान्यताओं को छोड़कर अपने स्वरूप में सिद्ध होना चाहिए। परंतु हम मान्यता एवं वासनापुर में जा रहा है। वही परम पूज्य महामंडलेश्वर महंत रघुनंदन गोस्वामी साहेब ने कहा कबीर की पंक्ति पंक्ति में कितनी आग है यह विचार करने पर पता चलता है और भक्ति के नाम पर चलने वाले कूड़े कचरे को एकदम जला देना चाहते हैं। धर्म और गुरु के समर्थक ही नहीं उन्हें मरने वाले सब महान धर्म प्राण एवं आध्यात्म प्रमाण थे। परंतु उनके नाम पर मनुष्य को बेवकूफ बताना, उन्हें बहुत खलता था। यह सब के सत्य स्वरूप के पक्षधर थे। वही नेपाल से आए परम पूज्य संत उमा साहेब ने कहा की सत्य पाया नहीं जाता किंतु सत्य का केवल ज्ञान पाया जाता है। बाहर का सत्य मेरा अपना सत्य नहीं हो सकता, क्योंकि बाहर किसी से मिलकर छूट जाती है। मेरा अपना सत्य मेरा अपना स्वरूप है। मेरा स्वरूप केवल चेतन है। जब तक हम यह नहीं समझते कि मेरा परम निधान ,परम आश्रय एवं परम केंद्र मेरी अपनी आत्मा ही है। मेरा अपना चेतन स्वरूप ही है।,तब तक हम छुट्टी नहीं पा सकते। वही पूर्णिया कोर्ट से आए परम पूज्य आचार्य महंत जितेंद्र साहब ने कहा अपने आप को मन की धारा से अलग करना यही तो साधना है। मन में ही तो सारा कूड़ा कबाड़ भरा रहता है। जो मनुष्य मन को अलग कर देता है, और स्वच्छ हो जाता है पवित्र हो जाता है। मन की संकल्प को तोड़ते रहो, फिर ना फूल होंगे ना फल। राग मानना द्वेष मानना तथा अनेक प्रकार की मान्यताओं का जाल बनाना, यही सब तो जीव की मान्यता को नष्ट करता है। जब जीव सारी मान्यताओं के बोझ से तथा मन की धारा से मुक्त हो जाता है तो वह सदा आनंद स्वरूप हो जाता है। अब की पूरियां जो निरूवारे सो जन सदा अनंदा। वही परम पूज्य गुरुदेव महंत भूपनारायण साहेब ने कहा सदगुरु कबीर साहेब अहिंसा के परम पुजारी थे, वे मानव तथा मानवेतर प्राणियों को एक समान प्राण प्रिय मानकर सबके साथ प्रेम एवं दया का व्यवहार करना उचित समझते थे। शक्ति चले तक किसी को कष्ट ना दो, जीव मत मारो बापुरा। सबका एक प्राण। कहते हैं सभी जीवो को एक समान अपने प्राणप्रिय है। कोई पीड़ा नहीं चाहता और आपका भी कर्तव्य बनता है किसी को पीड़ा ना देना। मानवता के विरुद्ध है। यदि किसी को पीड़ा दोगे तो वह तुमसे बदला लेना चाहेगा। मानव ही नहीं मानवता प्राणी भी अपने सताने वालों से सावधान रहते हैं और अवसर आने पर बदला लेने का भरपूर प्रयास करते हैं। वही कबीर मठ सहवानी के उत्तराधिकारी संत अमरदीप साहेब एवं संयोजक प्रो कुलदीप यादव ने कहा दूर-दूर से पधारे श्रद्धालुओं ने सत्संग-भंडारा में तन मन धन से सहयोग देकर कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग प्रदान किया है।