दृढ़ ध्यानाभ्यास से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव: स्वामी भागीरथ : drid dhyan abhyas se hi Ishwar ki prapti sambhav: Swami Bhagirath 

ईश्वर ने हमारी एक ही जाती बनायी है वह है मानव जाति: स्वामी शिवानंद बाबा

कुमारी आरती@जानकीनगर/पूर्णिया

पूर्णिया: जिले के जानकीनगर के रामपुर तिलक पंचायत वार्ड नंबर 15 स्थित महषि मेंहीं योगा आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय सत्संग प्रेमियों को संबोधित करते हुए अररिया आश्रम के स्वामी शिवानंद बाबा ने कहा कि ईश्वर ने हमारी एक ही जाती बनायी है। वह है मानव जाति। संत महात्माओं ने मानव उपकार के लिए शुभ कर्म करने का एक मार्ग दिखाया। जिसे मानव धर्म कहां गया। अगर सबों में सदाचार आ जाए और लोग परस्पर मेल से रहें तो निसंदेह उज्जवल सामाज बनेगा। वहीं कुप्पाघाट भागलपुर के संत रविन्द्र बाबा, महेन्द्र बाबा सहित अन्य साधु-महात्माओं ने प्रवचन दिये कि सत्संग में आने वाले ही परमात्मा के कृपापात्र बनते हैं। सत्संग से ही जीव को वह ज्ञान प्राप्त होता है जिससे इस संसार के दुखों से छुट कर अंनत सुख को प्राप्त कर सकते हैं। सत्संग-भजन करनेववाले को जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। इसके लिए सच्चे सदगुरु की शरण में जा कर उनके बताए मार्ग पर चलना चाहिए। सच्चे सदगुरु परमात्मा से मिला देने वाले होते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा की प्राप्ति अपने अंदर में होगी। इसके लिए गुरु से युक्ति जानकर भक्ति करनी चाहिए।

दृढ़ ध्यानाभ्यास से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव: स्वामी भागीरथ

वही पूर्णिया जिले के जानकीनगर थाना क्षेत्र के रामपुर तिलक पंचायत के वार्ड नंबर 15 स्थित महर्षि मेंहीं योगा आश्रम हो रहे भव्य सत्संग के दूसरे दिन रविवार को महर्षि मेंही आश्रम कुप्पाघाट भागलपुर के गुरूसेवी भागीरथ दास जी महाराज ने कहा की दृढ़ ध्यान अभ्यास से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है‌‌। जिसके लिए सच्चे संत सतगुरु से युक्ति जानकर यतन करने की जरूरत है। मानस जप, मानस ध्यान तथा दृष्टि साधन की विधियों का वर्णन करते हुए कहा कि इंद्रियों को वश में कर इन क्रियाओं के माध्यम से कोई भी मनुष्य ईश्वर को पाकड़ सदा के लिए दुखों से छूट सकता है। वही गुरु सेवी स्वामी भागीरथ जी महाराज ने सत्संग के दौरान प्रवचन से श्रद्धालुओं को सत्संग की महत्व पर प्रवचन दिया। आगे कहां कि परमात्मा से बिछुड़कर जीव शरीर, घर आदि को अपना मान बैठा है। माया के अधीन होकर अपना निज रूप विस्मृत कर गया है‌। इसी कारण यह संसार अनेक कष्ट को भोग रहा है। दुखों से छूटने का सबसे पहला उपाय सत्संग करना है। इस सत्संग से बहुत लाभ है। सुबुद्धि, यश,मोक्ष, ऐश्वर्य, शीलता यह सभी सत्संग से ही प्राप्त होते हैं। बिना सत्संग किए विवेक नहीं होता है। यह सत्संग ईश्वर की कृपा से ही सुलभ होता है। शरीर रथ है, इंद्रियां घोड़े हैं, मन लगाम है, बुद्धि सारथी है और आत्मा रथी। इंद्रीयरूपी घोड़े को बस में करने की शक्ति सत्संग से ही प्राप्त होती है। सत्संग करने से ज्ञान होता है केवल बुद्धि की जानकारी प्राप्त नहीं है अनुभव ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान भी होना चाहिए। यह सब सौतन करने से और संतों के सानिध्य से ही प्राप्त होता है लोगों को सुबह शाम सत्संग अवश्य करना चाहिए। वही महर्षि मेंही परमहंस दास जी महाराज ने जनकल्याण के लिए संतमत को स्थापित किया था। कहा कि मनुष्य को सात्विक भोजन करना चाहिए। जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन। यदि जीवन में अमन-चैन लाना है, तो घरों में नित्य सभी कार्यों से निवृत होकर खुद भी धार्मिक ग्रंथ का पाठ करें और अपने घर सभी सदस्यों को धर्म ग्रंथ पढ़ने के लिए प्रेरित करें। ऐसा करने से आपके साथ ही आपके परिवार के सभी सदस्यों का लगाव अध्यात्म से हो जाएगा। जिससे आपके घर परिवार में सुख और शांति आ जाएगी‌। अपने जीवन को यदि सार्थक बनाना चाहते हो तो ईश्वर की भक्ति को अपने नित्य दिन शामिल कर लें। संतमत सत्संग से जुड़ कर गुरुवाणी का श्रवण करें‌। वही सत्संग के दौरान अन्य साधु-महात्माओं ने भी प्रवचन दौरान कहा कि हम अपनी कुवृत्तियों को छोड़कर ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। सत्संग से ही ईश्वर प्राप्ति के रास्ते प्राप्त होते हैं। इसके लिए इंसान को सदा सत्संग में प्रवृत्ति रखनी चाहिए। सत्संग करने से ध्यान अभ्यास करने की युक्ति मिल जाती है।

जब तक जीव माया में लिपटा रहेगा कभी भी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता : भागीरथ महाराज

वही जानकीनगर थाना क्षेत्र के रामपुर तिलक पंचायत के वार्ड नंबर 15 स्थित महर्षि मेंही योगा आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय सत्संग सोमवार को सम्पन्न हो गया। वही रामपुर तिलक में आयोजित सत्संग के दौरान कुप्पाघाट भागलपुर के गुरु सेवी भागीरथ महाराज ने सत्संग में प्रवचन दिया। वहीं भागीरथ बाबा ने प्रवचन के दौरान ईश्वर स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा कि 14 इंद्रियों से अलग होकर ईश्वर को पाया जा सकता है। जब तक जीव माया में लिपटा रहेगा। वह कभी भी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। जीव 84 लाख योनियों में भटक कर सदा दुख पाता रहेगा। उन्होंने कहा कि निरंतर ध्यान अभ्यास से ही सत्संग के रास्ते पर चलकर इंसान आत्मा को परमात्मा में मिलाकर सदा दुखों से छूट सकता है। उन्होंने कहा कि जीव सदा सुखी रहना चाहता है। लेकिन वह माया में फंसकर जन्म-जन्मांतर तक दुख में डूबा रहता है। माया में रहकर सुख की चाह ही जीव के दुखों का सबसे बड़ा कारण है। जिस दिन जीव माया से अलग होकर गुरु के बताए रास्ते पर चलकर ईश्वर भक्ति में लगेगा। निश्चित तौर पर मुक्ति पाकर वह जीवन में सदा – सदा के लिए सुखी बन जाएगा। इस दौरान अन्य साधु महात्माओं ने भी प्रवचन दिया। वही रामपुर तिलक पंचायत में हो रहे सत्संग में सत्संग प्रेमियों की भीड़ के आगे सत्संग पंडाल भी छोटा पड़ गया। प्रतिदिन भंडारा में लगभग दस हजार लोग भोजन कर रहे हैं। दूर दरार के संतों और सत्संग प्रेमियों की महफिल सजा है। रामपुर तिलक सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महराज के जयकारों से गूंजता रहा है।

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